बिके कभी वह प्लाट
बिके कभी वह प्लाट जो, ईशान दिशा होय।
साईज सभी ठीक है, कहे बिकाऊ कोय ।।
कहे बिकाऊ कोय, बात करलो तुम पक्की।
गिन-गिन दे दो नोट,खींच दीवारें पक्की।।
कह ‘वाणी’ कविराज, चूको ना मौका कभी।
रखो उसे चुपचाप, बिक जाय दुबारा कभी।।
शब्दार्थ: : सौदा = लेन-देन, मौका - सुअवसर
भावार्थ:
संयोगवश यदि उत्तर व पूर्व दिशा में कोई भूखण्ड बिक रहा हो तो तुम्हें बात पक्की कर शीघ्र खरीद लेना चाहिए । भुगतान कर देने के तुरन्त पश्चात् आपको अपनी बाउण्ड्रीवाॅल खींचं देनी चाहिए।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि कभी ऐसे सुनहरे मौके कोहाथों से जाने नहीं दें। कुछ समय तक तम्हें उस सौदे काव्यर्थ प्रचार-प्रसार नहीं करना चाहिए, क्योंकि बेचने वालों के मन में कुछ लालच उठ गया तो वह कोई चाल-चल कर और पैसे ऐंठने का षडयंत्र रच सकते हैं। पूर्ण सावधान रहें। आजकल के इंसानों का कुछ भी भरोसा नहीं है।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया
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