वायु कोण भरो अनाज
आया अनाज खेत का, पत्नी गावे गीत ।
सौ-सौ बोरी माल का, स्थान बताओ मीत ।।
स्थान बताओ मीत, माल खराब न हो जाय।
जब भर ट्रेक्टर जाय, भर तिजोरी नोट लाय।।
कह ‘वाणी’ कविराज, वायु कोण भरो अनाज।
भर तिजोरियाँ चार, हीरे बन बिका अनाज ।।
शब्दार्थ:
: मीत = मित्र, वायु कोण = उत्तर पश्चिम का भाग
भावार्थ:
सहृदय परिश्रमी कृृषक के घर परखेतों से सौ-सौ बोरी अनाज आया है। जिज्ञासु पत्नी सुशीला पूछ रही है किहेनाथ! घर में इतनाअनाज पहली बार आया है, बताओइसे कहाँ खाली कराएं। भवन में ऐसा स्थान बताओ कि यह अनाज खराब नहीं होवे और जब ट्रैक्टर भर-भर कर मण्डी में बिकने जाए तब तिजोरियाँ भर-भर कर नोट लाए। चाहे एक-एक,दो-दो के ही नोटक्यों नहों अनपढ़ सुशीलाजी तो नोटों की भरी हुई तिजोरियाँ देखना चाहती हैं।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि वायु कोण के कमरों में अनाजभरने से वह सुरक्षित भी रहता है और समय आनेपरहीरों के भाव बिकता हुआ खाली तिजोरियाँ भर देता है।
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