उत्तर दिशा रखो खुली
उत्तर दिशा रखो खुली, पूरब में भी छोड़ ।
दक्षिण-पश्चिम घर बने, देवे जीवन मोड़ ।।
देवे जीवन मोड़, लाभ पदोन्नति का होय ।
खाय पाँच पकवान, नहीं कभी अवसर खोय ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, दिखे जमीं स्वर्ग बन कर।
रहता सौ-सौ साल, कुबेर मार्ग है उत्तर ।।
शब्दार्थ: जमीं = भूमि, कुबेर = धन के देवता
भावार्थ:
उत्तर-पूर्व दिशा खुली छोड़ते हुए निर्मित भवन ही, जीवनोपयोगी सिद्ध हो सकता है। दक्षिण-पश्चिम भाग में निर्माण कार्य से जीवन प्रगति की ओर अग्रसर होता है। वहाँ धन-लाभ ही नहीं पदोन्नति के सुअवसर भी आते हैं। पाँचों पकवान तो प्रायः बनते ही रहते हैं। शरीर सदैव, पूर्ण स्वस्थ रहता
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि उस भवन में स्वर्ग उतर कर सौ-सौ वर्षों तक रहता है। धन की कमी तो कभी नहीं आती है क्योंकि कुबेर का हेड क्वार्टर भी, उत्तर दिशा में ही होता है।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
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