स्वीमिंग पूल
सफल विवाह मुश्किल से, पिया गए परदेश।
रजनी जले चन्द्रमुखी, हुए विमुख प्राणेश ।।
हुए विमुख प्राणेश, आय नहीं प्रेम-पाती।
जलने को बेताब, वह बिन दिए की बाती ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, भरो टैंकर-टैंकर जल।
बना स्वीमिंग पूल, विवाह होय पूर्ण सफल ।।
शब्दार्थ: पिया = पति, विमुख = दूर चले जाना, बेताब = बेकाबू, अनियंत्रित
भावार्थ:
एक श्रीमान् प्रेमसुखजी की सातवीं जगह सगाई पक्की होकर धूम-धाम से विवाह तो हो गया किन्तु कुछ ही समय बाद उन्हें परदेशजाना पड़ गया। नव-वधू फिर विरहाग्नि में जलने लग गई। दूध-सी उज्ज्व ल चाँदनी में चंद्रबदनी सारी सारी रात बिना दीपक की बाती के समान जलने को विवश हो गई। यहाँ से नियमित पत्र जा रहे हैं, किंतु उधर से ना प्रेम सुख आते हैं ना प्रेम-पाती।
‘वाणी’ कविराज सुन्दर सुझाव देते हैं कि हे नव यौवना! कुछ स्वर्णाभूषण बेच कर ईशान कोण में स्वीमिंग पूल बनवालो। टैंकरों से जल भरवा लेना। अविस्मरणीय सफलता को देख आपकी काॅलोनी के हर बंग्ले में स्वीमिंग पूल बन जाएगा।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
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