स्वर्ण-सीढ़ी
चढ़ती सीढ़ी आपकी, संख्या विषम रखाय ।
करो रचना तुम उसकी, घड़ी घूमती जाय ।।
घड़ी घूमती जाय, घूम लेफ्ट से राईट ।
जल्दी वे दिन आय, एवरी थिंग राईट ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, चढ़े सात-सात पीढ़ी।
और स्वर्ग ले जाय, रखो पाँव स्वर्ण-सीढ़ी।
शब्दार्थ:
विषम = 1,3,5,7 संख्या, लेफ्ट से राईट = बाँये से दाँए, एवरीथिंग इज राईट = सब कुछ ठीक होना
भावार्थ:
जब घर में सीढ़ी चढ़ाई जा रही हो तब इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि सोपानों की संख्या विषम हो। यदि घुमावदार सीढ़ी हो तो सीढ़ी का घुमाव भी घड़ी के काँटों की भाँति लेफ्ट से राईट की ओर ही हो.। इस प्रकार सीढ़ी सही स्वरूप में बनने से घर कई दृष्टिकोणों से संतुलित अवस्था में आने लगता है।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि वहाँ सात-सात पीढ़ियाँ आराम से सीढ़ियाँ चढ़ती-उतरती हैं। जीवन के उत्तरार्द्ध में सोने की सीढ़ी के ऊपर पाँव रखवा कर वही सीढ़ी आपको स्वर्गतक ले जाती है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें