सूरज
सूरज किरणें आ रही, है सुन्दर प्रभात ।
प्रभात किलोलें करे, करे तुतलाय बात।
करे तुतलाय बात, होय बात-बात अचरज।
अचरज बढ़ता जाय,जाय बाल कर-कर अरज।।
कह ‘वाणी’ कविराज, पेड़ यदि रोके सूरज।
देओ उसे गिराय, पूजो हर साल सूरज ।।
शब्दार्थ:
अरज = निवेदन, किलोलें = बाल किलकारियाँ, सूरज = जन्मोपरांत जलवा पूजन, प्रभात = प्रातः कालध्बालक का नाम
भावार्थ:
प्रातरूकालीन सूर्य रश्मियाँ पत्तों, डालियों सेछन-छन कर आ रही हैं। प्रभातनामकराजकुमारकिलकारियाँ मारता हुआ तुतलाती बोली में बातें कर रहा है। उसकी प्रत्येक बातमन को प्रिय लगतीहई अचरज का विषय बन रही है।बालक कई प्रकार की फरमाईशें कर-कर के भाग रहा है।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि यदि भवन के पूर्व दिशा में ऐसे बड़े-बड़े पेड़ हों जिनसे सूर्य रश्मियाँ रुक जाती हों तो उनपेड़ों को काट धराशायी कर, उन्हें पुनरू पश्चिम दिशा में लगा दें। सूर्य की किरणें सीधी आने से वंश-वृद्धि ऐसी बढ़ती है कि हर साल पुत्र पाओ और हर साल सूरज पूजो।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया
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