सौ गुणी आपकी आय
आय आपकी जब घटे, घट-घट में दुख होय ।
खुल्लम-खुल्ला सब हँसे, छिप-छिप कर सब रोय ।।
छिप-छिप कर सब रोय, करो मिल-जुल एक काम ।
दौड़े धन धन्नाट, ले तेरे घर विश्राम ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, जल की टंकियां बनाय ।
जहाँ नैऋत्य कोण, सौ गुणी आपकी आय ।।
शब्दार्थ: नैऋत्य = पश्चिम = दक्षिण भाग
भावार्थ:
घर की आय घट ने लगे, तब सब की आत्मा को कष्ट होने लगता है परिवार के सभी सदस्य समूह में खुल्लम-खुल्ला हँस तो लेते हैं किंतु अकेले में बिना आँसू बहाए घंटों तक रोते हैं । भाईयों! रोना-धोना छोड़ कर एक ऐसा कार्य करो जिससे बहुत तेजी से दौड़ता हुआ धन तुम्हारे ही घर आकर नाईट-होल्ट करे ।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि इसके लिए भवन के नैऋत्य कोण में पानी की टंकियाँ बनावें । संख्या बढ़ाने के लिए बड़ी टंकी में कुछ पार्टीशन कर सकते हैं । इससे आय कईगुणी बढ़ जाएगी । यदि टंकी अन्यत्र है, तो उसे शीघ्र स्थानांतरित करें ।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
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