श्रेष्ठतम् मकान
चार तरफ ओपन रहे, वह श्रेष्ठतम् मकान ।
जगह छोड़ते समय तो, निकले सबकी जान ।।
निकले सबकी जान, जान को यूँ समझाले ।
हवा रोशनी आय, भवन अमृत के प्याले ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, जहां अंधेर हर तरफ ।
बच्चे हो बीमार, घर में रोय चार तरफ ।।
शब्दार्थ: ओपन = खुला, श्रेष्ठतम् = सबसे अच्छा
भावार्थ:
श्रेष्ठतम् मकान वह है जिसके चारों दिशाओं में साईड-बेक पर्याप्त छोड़े हुए हों । चारों दिशाओं में जगह छोड़ते समय तो जीव को ऐसा कष्ट होता है मानो उसकी जान ही निकल रही हो । ऐसी नाजुक स्थिति में उस दुरूखी हृदय को यूँ तसल्ली दिलानी चाहिए कि खुला भवन तो मानों अमृत का प्याला है ।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि इसके ठीक विपरीत जिस घर में अंधेरा रहता हो या अपर्याप्त हवा-रोशनी हो वहाँ बच्चे प्राय बीमार रहते हैं । घर में चारों तरफ से बस उनके रोने की आवाजें ही आती रहती हैं ।
आप तो जानते ही हैं जिगर के टुकड़ों के रात-दिन रोते रहने से जिगर का खून कितना जल्दी सूख जाता है । मकान का जो कोना हवा-रोशनी के लिए बन्द हो गया हो वहां खिड़की वेन्टीलेशन व द्वार जो भी संभव हो लगा कर इस दोष को दूर किया जा सकता है । ईशान व वायव्य कोण को अवश्य खुला रखें ।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें