शल्य-शोधन
शल्य-शोधन जहाँ करें, खड्डा दे खुदवाय।
सिर जितना गहरा करें, मिट्टी दे फिंकवाय ।।
मिट्टी दे फिकवाय, शुद्ध मिट्टी मंगवाय ।
बुला नक्शा नवीस, नवीन नक्शा बनवाय ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, होय वहाँ वास्तु-पूजन।
रहे पीढ़ियाँ सात, करो मित्र शल्य-शोधन ।।
शब्दार्थ: : शल्य-शोधन = भूमि का शुद्धिकरण, नवीन : नया
भावार्थ:
भूमि का शल्य-शोधन करने के लिए गृह-स्वामी के सिर के बराबर गहरा उस आवासीय भूखण्ड पर चारों ओर से खड्डा खोद कर सारी मिट्टी बाहर फिंकवानी चाहिए। उस पूरे खड्डे को पुनर: ताजा मिट्टी से भरना चाहिए। निर्माण कार्य के पूर्व नक्शा नवीस आर्किटेक्ट व वास्तुकारों की मदद से वास्तु नियमानुसार आधुनिक नक्शा बनवाना चाहिए।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि श्रेष्ठ वैदिक ब्राह्मण द्वारा वास्तु पूजन कराने के पश्चात निर्माण-कार्य प्रारंभ करने से सात-सात पीढ़ियां बड़े आनंद से रहती हैं।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया
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