रूप वर्गाकार
ऐसे कमरे सब बने, पूरब रहे ढलान ।
रूप वर्गाकार रहे, रूप धरे भगवान ।।
रूप धरे भगवान, पल-पल बढता आनंद ।
खुले आपके भाग्य, थे जो वर्षों से बंद ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, पास जिनके कम पैसे।
सब कुछ स्वतरू आवे, बनालो कमरे ऐसे ।।
शब्दार्थ: : वर्गाकार = लम्बाई चैड़ाई बराबर व चारों कोण समकोण होना
भावार्थ:
भवन में सभी कमरे ऐसे बनने चाहिए जो पूर्णतः वर्गाकार हों एवं उनके ढलान ईशान कोण की ओर हों। ऐसे भवनों पर ईश्वर प्रसन्न होभिन्न-भिन्न रूप धारण करविचरण करते रहते हैं। जीवन का प्रत्येक क्षण वहां आनन्द से बीतता है। वर्षों से बन्द भाग्य शीघ्र ही खुल जाते हैं।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि सामान्य श्रेणी के व्यक्तियों को ऐसे वर्गाकार कमरे बनाने मात्र से ही सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति हो जाती है।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया
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