रचो कमरा नैऋत
काम करे श्रीमानजी, रख दिल में ईमान ।
ले पैसा मेहनत का, सब जाने भगवान ।।
सब जाने भगवान, खाय ना फूटी कौड़ी ।
जीवन बीता जाय, मिली ना इज्जत थोड़ी ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, बिन अपराध धरे दाम ।
रचो कमरा नैऋत,बिन कहे होय सब काम ।।
शब्दार्थ: कौड़ी = अत्यल्प राशि, नैऋत = पश्चिम-दक्षिण भाग, थोड़ी = कम मात्रा
भावार्थ: एक श्रीमान्जी ने जीवन भर पूरी ईमानदारी से पसीने का पैसा कमाया । इस बात के भगवान साक्षी हैं कि जीवन में उन्होंने एक कौड़ी भी रिश्वत नहीं खाई । इसके बावजूद भी उन्हें जीवन में कभी सम्मान नहीं मिला । कभी-कभी तो ऐसी स्थिति भी बन गई कि बिना ही गलती के जुरमाना देना पड़ गया ।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि भवन के नैऋतभागमें एक कमरा और बना देने से इतना सम्मान बढ़ेगा कि आपके बिना ही कहे सभी कार्य अपने आप सम्पन्न होने लग जाएंगे ।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
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