पूरब-उत्तर कोण
गोल करे ईशान को, सब कुछ होवे गोल।
लाखों के उस प्लाट का, कौड़ी आवे मोल ।।
कौड़ी आवे मोल, आय मुसीबतें भारी।
पीढी बीती जाय, गूंजे न घर किलकारी।।
कह ‘वाणी’ कविराज, पुत्र बिना दत्तक मरे।
पूरब-उत्तर कोण, बिना सोचे गोल करे।।
शब्दार्थ: दत्तक = गोद लिया गया पुत्र, राखे = रखना
भावार्थ:
अपने मकान के फ्रंट को अत्याधुनिक बनाने की होड में या कभी-कभी रोड को दख कर ईषान कोण को भी गोलाकार बना देते हैं, जो कि हानिकारक सिद्ध होता हुआ सब कुछ गोल कर देता हैं। लाखों रुपये लगा देने पर भी वास्तुषास्त्र को जानने वाले उसे कौडियों के भाव भी नहीं लेते हैं । उन घरों में कई प्रकार की परेषानियांॅ आ जाती हैं, जिसमें पुत्र- रत्न का जन्म नही होना सर्वाधिक प्रमुख हैं ।
वाणी’ कविराज कहते हैं कि जब तक ईषान कोण गोल आकृति में रहेगा तब तक दतक पुत्र भी पुत्रहीन रहते हुए स्वर्गारोहण करते रहेंगे । ईषान कोण को 90 डिग्री से छोटा रखने नर अच्छी वंष वृद्धि होती हैं । बाउण्ड्रीवाल में तनिक तिरछापन देने से यह संभव हैं ।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
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