पूरब खुली जगह
वंश बढ़े यूँ आपका, दो-दो होवे साथ ।
साथ-साथ वे सब रहें,चले मिला कर हाथ।।
चले मिला कर हाथ, बड़े-बड़े जोड़े हाथ ।
मोटे-मोटे काम, होय सभी हाथों-हाथ ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, पूरब खुली जगह बढ़े।
उत्तर खुल्ला होय, तो धन-धान-वंश बढ़े।
शब्दार्थ: : हाथों-हाथ = अतिशीघ्र कार्य होना
भावार्थ: वंश-वृद्धि इस प्रकार बढ़ेगी कि दो-दो पुत्र हर बार साथ जन्मेंगे। वे ऐसे मिल-जुल कर रहेंगे कि उनके सुदृढ़ भ्रातृत्व प्रेम को देख बड़े-बड़े लोग उनसे हाथ जोड़ कर मित्रता कायम करना चाहेंगे। उनके बड़े-बड़े कार्य भी हाथों हाथ पूर्ण हो जावेंगे।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि भवन में सर्वाधिक खुली जगह पूर्व दिशा में छोड़नी चाहिए, जिससे वंश-वृद्धि और उत्तर दिशा में खुली जगह छोड़ने से धन-वृद्धि होती है। दोनों प्रकार की वृद्धियों से ही समाज में प्रतिष्ठा बढ़ती है और जीवन आनन्दमय व्यतीत होता है।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया
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