पिरामिड
ठीक करो हे वैद्यजी, नाड़ी-वाड़ी देख ।
अब जीना मुश्किल लगे, देखो जीवन-रेख।
देखो जीवन-रेख, देख कर जेबें सारी।
कह वैद्य महाराज, रोग है तुमको भारी ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, करो सब रोगी ऐसा ।
नैऋत्य रचो पिरामिड, खर्च ना होगा पैसा ।।
शब्दार्थ: जीवन-रेख = हाथों में आयु बताने वाली रेखा, पिरामिड = मिश्र के पिरामिड जैसी लघु आकृति
भावार्थ:
दिन-दिनस्वास्थ्य गिरते जाने पर वैद्यजी से निवेदन किया कि श्रीमान् नाड़ी और जीवन रेखा देख रोग का उपचार बताओ। हमारी बड़ी-बड़ी जेबें भरी हुई देख कर वैद्यजी बोले अरे ! तुम्हें तो बड़ा भारी रोग लग गया है।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि हे रोगियों ! कृपया अब आप प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति का सहारा लेवें । भवन के नैऋत्य कोण में पिरामिड की रचना कर उसके तले बैठनेमात्र से बहुत लाभहोता है। प्रकृति के द्वारा ही ऐसीचमत्कारिक अलौकिक शक्ति प्राप्त होती है, जिससे धीरे-धीरे सभी प्रकार के रोग बिना ही दवा के स्वतः दूर हो जाते हैं, जिससे धन भी खर्च नहीं होता है ।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया
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