पानी के टैंक
रच पानी के टैंक को, ईशान कोण जाय ।
मान आपका यूँ बढ़े, लक्ष्मी दौड़ी आय ॥
लक्ष्मी दौड़ी आय, टैंक रखना विषम नाप।
गहरा जितना होय, होय उतने धनी आप॥
कह'वाणी' कविराज, आप राजा वह रानी।
भरे दासी पानी, होंगे न आप पानी-पानी॥
शब्दार्थ: ईशान = भवन के पूर्व-उत्तर का भाग, विषम नाप = 1,3,5,7 फीट या मीटर पानी = पानी होना = बहत लज्जित होना
भावार्थ:
पानी का टैंक सदैव भवन के ईशान कोण में ही होना चाहिए । उसकी लम्बाई, चैड़ाई और गहराई का सीधा संबंध धन-वृद्धि से है । आप जितने धनवान होना चाहते है । उतना ही गहरा टैंक बनवावें ।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि उस भवन में दास दासी पानी भरते हैं व गृह-स्वामी का जीवन राजा-रानी के समान व्यतीत होता है । जीवन-पर्यंत उन्हें कभी पानी-पानी नहीं होना पड़ेगा ।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
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