पैसा
पैसा-पैसा क्या करे, करले ऐसा काम ।
जहाँ तिजोरी तुम रखो,लो कुबेर का नाम ।
लो कुबेर का नाम, न रखते कोई देखे ।
ऐसे खिड़की द्वार, विद्व-जन के ही देखे ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, कभी था ऐसा-वैसा ।
पूजे सौ-सौ गाँव, बढ़ा ऐसा यह पैसा ।।
शब्दार्थ: विद्व-जन = विद्वान, पूजे = खूब सम्मान द
भावार्थ:
आर्थिक स्थिति डाँवा-डोल होने पर तुम्हें यह करना चाहिए कि उत्तर दिशा में तिजोरी रखते हुए कुबेर देवता का पूजन करें । धन इस प्रकार रखना-निकालना चाहिए कि कोई देख ना सके । उस समय बच्चों को गोली-बिस्कुट के लिए किराणा की दुकान पर भेज देना चाहिए । ऐसी खिड़की, द्वार व तिजोरी विद्व-जनों के भवनों में लगते हैं ।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि उत्तर दिशा में तिजोरी रखने से एक व्यापारी जो कभी साधारण व्यवसाय करता था, आजसौ-सौ गाँवों में उसका व्यवसाय व पैसा बढ़ गया, साथ ही उसने पैसा ही नहीं अपितु उतना सम्मान भी प्राप्त किया है ।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
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