न्यून कोण
जब शेरमुखी ना छूटे, ऐसा करलो आप ।
यदि उत्तर-पूरब बढ़े, घटे भूमि के पाप ।।
घटे भूमि के पाप, छोड़ो पश्चिम कुछ जगह।
ईशान न्यून कोण, रहे लक्ष्मी उसी जगह ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, मिलेगा आराम गजब।
जगह छोड़ रच बाग, हो भूमिशेरमुखी जब ।।
शब्दार्थ: : गजब = आश्चर्यजनक, रच बाग = बगीचा लगाना
भावार्थ:
कभी संयोग वश शेरमुखी जमीं को छोड़ना मुमकिन नहीं हो तब आप ऐसा करें कि पूर्व और उत्तर की भुजाओं को बढ़ाने से अर्थात् अधिक कोण को न्यून कोण में बदलने से आवासीय भूमि के कई दोष स्वतरू समाप्त हो जाते हैं। इसके लिए पश्चिम दिशा में कुछ जगह छोड़नी पड़ेगी। ईशान कोण को न्यून कोण में बदलने पर लक्ष्मी भी स्थाई निवास करेगी।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि उक्त परिवर्तनोपरांत सभी प्रकार की सुख-सुविधाएँ आपको निरन्तर मिलती रहेंगी। वहाँ दीवार बनाने के बाद जो जगह बच जाती है. वहाँ पर आप कोई छोटा-सा बगीचा लगा सकते हैं। इससे भूमि दोष-मुक्त होकर आपके भवन को समृद्ध करेगी।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया
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