मेहमान
यदि मेहमान बहुत से, आते जाते खाय ।
पाँच-पाँच पकवान वे, खाय-खाय के खाय ।।
खाय-खाय के खाय, कभी ना रोटी खावे ।
जोड़े लंबे हाथ, आज श्रीराम बचावे ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, कर वायु-कोण सम्मान ।
फिर भी ना मन भाय, बनो तुम भी मेहमान ।।
शब्दार्थ:
:मन भाय = मन को उचित लगना
भावार्थ:
कई मेहमान ऐसे आते हैं, जिनसे मेजबान बेचारे भयंकर परेशान हो जाते हैं। वेनजाने कहाँ-कहाँ से आते-जाते हुए आपके घर आटपकते हैं। खीर-पूड़ी-हलवा आदिपाँचों पकवान खाने के बाद भी वे आपको खाए बिना आपका घर नहीं छोड़ते हैं। आपके यहाँ से जाने के तुरन्त बाद वे जाति-समाज व मित्र-मण्डली में आपकी मेहमानदारी की कटु आलोचना किए बिना एक दिन भी स्वस्थ नहीं रह सकते। आपका खाना तक दुश्वारहोजाता है। ऐसे मेहमान-पीड़ित सज्जन, प्रभु के लंबे हाथ जोड़ कर निवेदन करते हैं कि आज तो ऐसे मेहमानों से श्रीराम ही बचाएं। आज तो वे सूर्योदय से ही श्रीरामम् शरणम् गच्छामि श्री गणेशम् शरणम गच्छामि का मानसिक जाप करने लग गएहैं।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि वायु कोण में निर्मित कमरों में उन्हें ठहराने से वे अधिक दिनों तक नहीं ठहर पाते एवं दोनों ही पक्षों का सम्मान बढ़ता है। इसके बाद भीयदिमाकूल हल नहीं निकलताहोतब एक ही रास्ता बचता है कि जैसे ही आपकी मुण्डेर पर कौआ बोले कि तुरन्त, आप भी ताला लगा किसी के यहाँ मेहमान बनने निकल जाओ।
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