मंदिर
मंदिर का ध्यान रखना, रहना इतना दूर।
जो ऊंचाई भवन की, दूना मंदिर दूर।
दूना मंदिर दूर, भवन पर पड़े न छाया।
हो जहाँ मुख्य द्वार, दूर दुर्गा की माया ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, मान-मान रे यजमान।
रख दूरी सौ फीट, कर इष्ट देव का ध्यान ।।
शब्दार्थ:
यजमान निर्माण-कार्य कराने वाला
भावार्थ:
निर्माण-कार्य के समय इस बात का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए कि देवस्थान, मंदिर, देवरा आदि आपके भवन की ऊँचाई से कम से कम दूगुनी दूरी पर होने चाहिए। भवन पर किसी भी समय किसी भी मंदिर की छाया नहीं पड़नी चाहिए। मुख्य द्वार के पास दुर्गा-मंदिर या दुर्गा-प्रतिमा भी नहीं होनी चाहिए।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि अरे यजमान तुम मेरी बात मानलो देव मंदिरों से कम से कम 100-125 फीट की दूरी रखते हुए निर्माण-कार्य कराओ। भविष्य में कभी-भी आप दूसरी- तीसरी मंजिलें बना सकते हैं एवं कभी भी धनवान भक्तों द्वारा मंदिर की ऊँचाई भी बढ़ सकती है। अत: 100-125 फीट की दूरी रखें। अपने इष्ट देव का ध्यान करते हुए निर्माण कार्य प्रारम्भ करावें।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया
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