कुआँ
कुआँ बने या बावड़ी, या होय ट्यूब वेल ।
अग्नि स्थान होवे वहाँ, उल्टा हो सब खेल ।।
उल्टा हो सब खेल, जाय आन-मान व शान।
ना मिले विवाह-सुख, सदा रहते परेशान ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, भर काकाजल्दी कुआँ।
ऐसा दिन ना आय, बने वह मौत का कुआँ ।।
शब्दार्थ: अग्नि = भूखण्ड के पूर्व-दक्षिण का भाग
भावार्थ:
मकान बनाते समय यदि भूल से कुआँ, बावड़ी, हेण्डपम्प, नल, ट्यूबवेल इत्यादि अग्नि कोण में हो तो धीरे-धीरे सारा जीवन चैपट हो जाता है। केवल धन ही नहीं आन-मान-शान भी नष्ट हो जाती है। विवाह-सुख की प्राप्ति नहीं होती व परिवार घोर संकटों में पड़ जाता है।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि हे काका! तुम अग्नि कोण में बना हुआ यह कुआँ जल्द से जल्द भरदो, वरना कभी ऐसा दिन ना आ जाय कि यही कुआ तुम्हारे लिये मौत का कुआँ बन जाय । ईशान से वायव्य कोण के बीच कहीं भी कुआँ, ट्यूबवेल, वाटर टैंक होनाशुभ फलदायक होते हैं।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया
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