खिड़की
खिड़की ऐसी होय जो, ऊँची एक समान ।
समान दरवाजे रहे, दर-दर हो सम्मान ।।
दर-दर हो सम्मान, आय के आएं साधन ।
बिना कमाया दौड़, आए करोड़ों का धन ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, रख अच्छे समय खिड़की।
सुन्दर पड़ोसिन से, बातें करावे खिड़की।।
शब्दार्थ:
साधन = स्रोत
भावार्थ:
खिड़कियों की ऊँचाइयों में अंतर रख दिया तो यह हानिकारक सिद्ध होगा। दरवाजे भी इसी प्रकार समान ऊँचाई के होने चाहिए । दक्षिण दिशा के दरवाजे को धन-वृद्धि हेतु अन्य की तुलना में कुछ ज्यादा चैड़ा व कुछ ज्यादा ऊँचा रखना चाहिए । दरवाजों की समान ऊँचाई के कारणआयवसम्मान दोनों बढ़ते हैं,कभी-कभी तो बिना कमाया धन भी प्राप्त हो सकता है।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि अच्छे मुहूर्त में रखी खिड़की से अन्य लाभों में तो देर हो सकती है, किन्तु सुन्दर पड़ोसिन सेतो तुरन्त बातें करवाती है।
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