कर्जा
कर्जा-कर्जा क्या करे, क्यों न करे यह काम ।
उत्तर दिशा दिवार के, लगाय थोड़े दाम ।।
लगाय थोड़े दाम, गिरा कर कर दो छोटी ।
उत्तर में हो रोड़, लगा दो खिड़की मोटी ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, ईशान में दरवाजा ।
दिखे न पाँव-निशान, ऐसा भगे वह कर्जा ।।
शब्दार्थ: दाम = खर्चाध्धन, मोटी = बड़ी
भावार्थ:
कर्ज हो जाने की स्थिति में घबराएं नहीं, बल्कि यह छोटा-सा कार्य करें । उत्तर दिशा की दीवार को गिरा कर थोड़ी छोटी कर देवें । उस दिशा में रोड़ होने पर दरवाजे खिड़की अवश्य होंगे । आप आधे से पूर्व की ओर के भाग में एक या दो दरवाजे-खिड़कियां और लगा देवें किसी भी प्रकार ईशान कोण में इनकी संख्या बढ़ावें ।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि उक्त उपाय करने से कर्जा इतने वेग से भागेगा कि उसके पाँव के निशान तक नजर नहीं आएंगे ।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
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