जीना
उनका मकान यूँ बना, उत्तर जीना देय ।
नीचे डब्ल्यू,सी, बनी, बाथरूम भी देय ।।
बाथरूम भी देय, गई लक्ष्मी छोड़ रूम ।
ढूंढ रहे श्रीमान, गली-गली में अब घूम ।।
कह वाणी’ कविराज,बिना मित्र नहीं जीना ।
जीना बदल जीना, जीना सिखाय जीना ।।
शब्दार्थ: डब्ल्यू,सी, = लेट्रिन, जीना = सीढ़ी/जीवन
भावार्थ:
उत्तर दिशा में जीना ही नहीं बनाया बल्कि उसके नीचे लेट्रीन व बाथरूम भी बना दिये । तत्काल प्रभाव से लक्ष्मी नाराज होकर उनका भवन छोड़ कर चली गई । इस दोष को तो गृह-स्वामी समझ नहीं पाए और अब बड़ी टार्च लेकर उसे गली-गली में घूम-घूम कर ढूंढ रहे हैं, लेकिन लक्ष्मी दूर-दूर तक कहीं दिखाई नहीं दे रही है ।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि सारे मित्र भी अप्रसन्न होकर दूर-दूर चले गए, मित्रों के बिना कैसे जीना संभव होगा । जीवन पहले जैसा फिर हो जाएगा । तुम केवल जीना बदल दो नया जीना आपको नए ढंग से जीना सिखा देगा ।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें