जावे जल ईशान
पूरब ढलान दो सभी, रखना इतना ध्यान ।
फर्श उठा मछली बना, जावे जल ईशान ।।
जावे जल ईशान, वहां लक्ष्मी स्थिर होवे ।
जब जेबें भर जाय, कौन बेचारा रोवे ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, निर्धन होवे धनवान ।
करे मकान निहाल, बस रखो पूरब ढलान ।।
शब्दार्थ: निहाल = सम्पन्नता आना
भावार्थ:
निर्माण-कार्य के दौरान पूर्व दिशा की ओर ढलान देते हुए फर्श पर एक-दो पत्थरों को कुछ उठाते हुए मछलीव केंचुआ की आकृति बना देने से बहुत धन की प्राप्ति होती है। ईशान की ओर जल-प्रवाह हर दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ सिद्ध होता है। इससे लक्ष्मी स्थिर होती है। धन की शीतल हवा से सारे आँसू पल भर में ही सूख जाते हैं।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि इससे निर्धन व्यक्ति धनवान हो जाते हैं। यदि मकान का मुख्य मार्ग पश्चिम या दक्षिण दिशा में हो तो ईशान कोण से अण्डर ग्राउण्ड पाईप बिछाकर पानी को रोड़ की तरफ निकालना चाहिए।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
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