जल-स्थान
तुमने जल के पास में, अगर जलाया दीप ।
मित्र जलेंगे आप से, आवे नहीं समीप ।।
आवे नहीं समीप, तो बढ़े शत्रु के ख्याल ।
आवे थानेदार, बिगड़े जेबों के हाल ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, हाल जानूं घर-घर के।
इधर या उधर देख, मरे लाखों जल-जल के
शब्दार्थ: ख्याल = विचार, समीप = पास, हाल = स्थिति
भावार्थ:
भवन के प्रत्येक स्थान के अलग-अलग देवता होते हैं। आग व जल परस्पर पूर्ण विरोधी हैं। जल के स्थान ईशान कोण में कभी एक दीपक जितनी सी अग्नि भी नहीं जलाना चाहिए। इससे मित्रगण अप्रसन्न होकर दूर-दूर चले जाते हैं। शत्रु पक्ष निरन्तर बढ़ता जाता है। अन्त में थानेदार साहब आकर हमारी जेबों की स्थिति और दयनीय बना देते हैं।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि कहीं पर भी देखो लाखों मित्र इसी कारण से शत्रु बनते हुए ईष्र्या भाव से जल-जल कर मृत्यु को प्राप्त हो गए। अग्नि के रूप में भट्टी, चूल्हा, गेस, बिजली मीटर इत्यादि को अग्निकोण में स्थानांतरित करने से यह दोष दूर हो जाता है। यदि ईशान कोण में पूजा-पाठ होता है तो दीप जलाना उचित है
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
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