घर के बीच कुआँ
घर के बीच कुआँ जहाँ, जल्दी देओ मूंद ।
फर्शी करदो तुम वहाँ, एक रहे ना बूंद ।।
एक रहे ना बूंद, करो जहाँ पूजा-पाठ ।
टैंक खोदो ऐसा, ज्यूँ साईकिल-मरगाट ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, जो नैऋत्य कोण रचे ।
ओवर-हेड टंकी, सदा सुखी रहे घर के ।।
शब्दार्थ: मूंद = किसी खड्डे को भरना, रचे = निर्माण करना, नैऋत्य कोण = पश्चिम-दक्षिण भाग, ओवर हेड टंकी वह टंकी जो छत के ऊपर होती है, मरगाट (मडगाड) = साईकिल के पहिये पर धनुषाकार लोहे का कवर
भावार्थ:
किसी कारणवश यदि भवन के बीच में कुआँ हो तो उसे शीघ्राति शीघ्र भर देना चाहिए । वहाँ ऐसी फर्शी कर देवें कि पानी की एक बूंद भी नहीं दिखे । पुन : नया टैंक साइकिल के मरगाट जैसी आकृति का अथवा आयताकार, भवन के ईशान कोण में बनाएं,अर्थात् टैंक भवन को अपने आलिंगन में लेता हुआ दृष्टिगोचर हो ।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि नैऋत्य कोण अर्थात् भवन के सर्वोच्च भाग पर ओवर-हेड टंकी बनाने से धन व प्रसन्नताएँ कई गुणा बढ़ जाती हैं । परिवार के सभी सदस्य सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं ।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
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