गहरी नींव
खोद नींव तुम जब कहो, बैठो छाता तान ।
आय गाय के सिंग तो, आप हो भाग्यवान ।।
आप हो भाग्यवान, मिले पत्थर से सोना ।
सुख शांति देय ईंट,पड़े ना कुछ भी खोना ।।
कह ‘वाणी’ कविराज,ताम्र-पात्र लावे मोद ।
स्वर्ण-घट आय चार, और गहरी नींव खोद ।
शब्दार्थ:: ताम्र-पात्र = तांबे के घड़े बरतन, मोद = प्रसन्नता
भावार्थ:
मूविंग चेयर पर छाता तान कर बैठने के बाद ही नींव खोदने का मौखिक आदेश देना चाहिए, क्योंकि नीवों की खुदाई में से कुछ भी निकल सकता है । ऐसा ना हो जाय कि, वह मजदूर ही लेकर भाग जाए और अपनी गरीबी दूर कर लें । गाय के सींग निकलना भाग्यवान होने का संकेत, सुघड़ पत्थर से स्वर्ण-प्राप्ति की आशा बलवती होती है । पुरानी ईंटों से सुख-शांति मिलती है और ताम्र-पात्र प्रसन्नता देते हैं ।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि यदि चार सोने के घड़े निकल जाएं तो मजदूरों को कहोनींवजरा और गहरी खोदो भाई पांच-सात घड़े और निकलेंगे । ये चार घड़े तो हमारे दादा के गाड़े हुए, परदादा के गाड़े हुए तो अभी निकलने बाकी हैं ।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें