ईशान कोण
लाखों की माया बनी, लगा सबको कमाल।
ईश्वर की नाराजगी, हुआ न घर में लाल ।।
हुआ न घर में लाल, कौन खायगा सब माल।
जा लक्ष्मी के पास, रोय सेठ लक्ष्मीलाल ।।
कह ‘वाणी’कविराज, भीड़ दौड़ीलाखों की।
गिरा ईशान कोण, बची माया लाखों की।।
शब्दार्थ: माया = सांसारिक सम्पत्ति,कमाल = आश्चर्य
भावार्थ:
धन-सम्पत्ति तो खूब बढ़ रही किंतु ईश्वर की नाराजगी ऐसी बनी रही कि पुत्र नहीं हुआ। एक चिन्तायुक्त प्रश्न स्वतः जन्मा, कि घर में पुत्र ही नहीं है तो लाखों के इस ऐश्वर्य को कौन भोगेगा। यह कहते हुए सेठ लक्ष्मीलाल लक्ष्मी के पास जाकर आँसू बहाने लग गए। सगे-संबंधी सभी दौड़-दौड़ कर आते हुए कहने लगे अरे क्यों रोते हो? ये हमारे पुत्र कब काम आएंगे, इन्हें दत्तक पुत्र रखलो।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि जैसे उन्होंने भवन का सर्वोच्च ईशान भाग गिराया कि अगले वर्ष उनके घर में भी पुत्र किलकारी गूंज उठी और लाखों की माया का वारिस आ गया। इधर बच्चा बढ़ता गया और उधर रिश्तेदारों के चेहरे उतरते गए ।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
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