Vastu Shastra : Dwar Aisa rakha / Door Kept Improer (SK-40)


दरवाजा ऐसा रखा दरवाजा ऐसा रखा, रूठे रिश्तेदार । जैसे उनके नाम से, लाए माल उधार ।। लाए माल उधार, आई मुसीबत भारी । करे अकेले भोज, कहो क्या गाएं मारी ।। कह ‘वाणी’ कविराज, गिराय निर्माण ताजा । बुला तू वास्तुकार, तुरन्त बदल दरवाजा ।।


शब्दार्थ : भोज = सामूहिक भोजन

भावार्थ:
बिना सोचे-समझे मुख्य द्वार रखने का कुप्रभाव यह हुआ,सारे सगे-संबंधी-रिश्तेदार इतने नाराजहो गए, मानो उनका ही नाम लिखवाकर हम बाजार से निर्माण सामग्री उधार लाए हों। स्थिति ऐसी बन गई कि अब कहीं सामाजिक भोज का भी आयोजन होता है तो वे हमें आमंत्रण भी नहीं भेजते,जैसे हमने तो सैकड़ों गौ-हत्याएँ करदी हों।


वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया




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