दक्षिण ढलान
दक्षिण रहे ढलान तो, घटे घरों में आय ।
उछल-उछलधन लाड़ला, बहता-बहता जाय।
बहता-बहता जाय, स्त्री-वर्ग रहे बीमार ।
फीस बगैर डाॅक्टर, करे ना कभी उपचार ।
कह ‘वाणी’ कविराज, कर्जा ले जाय श्मशान ।
समस्या का उत्तर, उत्तर में करो ढलान ।
शब्दार्थ: : लाड़ला = प्राण प्रिय, बगैर = बिना
भावार्थ: भूमि, फर्श और छत का ढलान दक्षिण दिशा में होने से उन घरों की आय घटती जाती है। उछल-उछल कर प्राण-प्रिय लाड़ला धन बहता-बहता दूसरे सेठजी के घर चला जाता है। निर्धन हो जाने के साथ ही स्त्री-वर्ग में बीमारियाँ बढ़ जाती हैं। बार-बारफीसदे नहीं सकते और आज के समय में कौन ऐसा डाॅक्टर है जो बिना फीस लिए उपचार करता हो। धीरे-धीरे खर्चा चलाने के लिए ब्याज चुकाने के लिए भी ऋण लेना पड़ता है । एक दिन वही ऋण आपको पकड़ श्मशान ले जाता है। वहाँ सैकड़ों आदमियों के बीच में सारी वसूली कर लेता है।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि इस विकट समस्या का सहज उत्तर यही है कि भूमि, छत और फर्शी सभी का ढलान दक्षिण से बदल उत्तर या पूर्व दिशा में करें।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया
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