धन की दिशा
निन्याणू के खेल में, सौ-सौ चक्कर खाय ।
चार बजे जा सेठजी, अर्द्ध रात्रि को आय ।।
अर्द्ध रात्रि को आय, गली के भौंके कुत्ते ।
ना पहचान पावे, बेचारे देशी कुते ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, राज धन का मैं जानूं।
धन की दिशा उत्तर, कर एक के निन्याणू ।
शब्दार्थ:
राज = रहस्य, एक के निन्याणू = खूब धन कमाना
भावार्थ:
निन्याणवें के चक्कर में लाखों व्यक्तियों को सौ-सौ चक्कर काटते-काटते चक्कर आने लग गए, फिर भी उन्हें संतोषजनक सफलता नहीं मिल पाई। इन सेठजी को ही देखो चार बजे ब्रह्म-मुहर्त में घर से निकलते और अर्द्ध-रात्रि को लौटते हैं। यहाँ तक कि गली के कुत्ते भी नहीं पहचान पाने के कारण भौंकते हुए कभी-कभी धोती पकड़ लेते हैं। खैर! ये पढ़े लिखे भी नहीं, बेचारे देशी कुत्ते ही तो हैं।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि इस प्रकार धन-प्राप्ति नहीं होती है। धन का राज मैं जानता हूँ। धन की दिशा उत्तर है, संभव हो तो उत्तर दिशा में अधिक दरवाजे व खिड़कियाँ रखो और उत्तर की ओर तिजोरी रखो। धन के देवता कुबेर का पूजन करो। इस प्रकार कुबेर की कृपा से तुम एक के निन्याणवे, बड़ी आसानी से कर सकोगे।
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