चारगेट
चले कहीं बस आपका, गेट रखो तुम चार ।
चार तरफ हो रोड़ तो, मिले पुरुषार्थ चार ।।
मिले पुरुषार्थ चार, चार दिशा गूंजे नाम ।
कह सब दीन-दयाल, और कहते राम-श्याम ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, कोई खुश कोई जले ।
जले जलने वाले, तेरे बस पे बस चले ।।
शब्दार्थ:
गेट दरवाजा, चार पुरुषार्थ = अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष, बस पे बस चले निरन्तर आर्थिक सम्पन्नता बढ़ना,जले जलने वाले ईर्ष्यालु व्यक्तियों के ईर्ष्या
भावार्थ:
यदि आपका बस चले तो चारों दिशाओं में रोड़ होने पर चार द्वार रख देवें। इससे जीवन आनन्दमय व्यतीत होता हुआ चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति कराता है। आपकी कीर्ति सर्वत्र फैलेगी। चारों दिशाओं में आपका नाम होगा। आपको कभी दीन दयाल तो कभी राम-श्याम के नाम से पुकारेंगे।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि आपकी तरक्की को देख कर कुछ लोगप्रसन्न होंगेतो कईसारे ईर्ष्यावशजलने भीलगेंगे। आप निश्चिंत रहें। जलने वाले जल-जल कर जल जाएंगे, किंतु तुम्हारे तो बस पर बस चलेगी। आर्थिक उन्नति होती ही रहेगी।
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