भूमि शेरमुखी
शेरमुखी को छोड़ दो, समझ उसे तुम शेर ।
जो-जो भी तुमको मिले, मिले सब सवा सेर।
मिले सब सवा सेर, करे झगड़ा सुबह-शाम ।
पिता समझदार हो, तो पुत्र बिगाड़े काम ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, होय ना स्वप्न में सुखी।
पश्चिम-दक्षिण रोड़, छोड़ो भूमि शेरमुखी ।।
शब्दार्थ: शेरमुखी = वह भूमि जो आगे से चैड़ी व पीछे से संकड़ी हो
भावार्थ:
आवासीय प्रयोजन हेतु सिंहमुखी भूखण्ड श्रेष्ठनहीं रहता है। वहाँ व्यर्थ के विवाद होते रहते हैं। वहाँ जो-जो भी मिलते हैं सभी सवा सेर ही मिलते हैं। वे दो-दो चार-चार दिन रुकने वाले नहीं होते, वे तो सुबह-शाम झगड़ा करने वाले होते हैं। कहीं पड़ौसी परिवार में यदि पिता बुद्धिमान है तोपुत्र सारे ही कार्य बिगाड़ने वाला होता है।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं किसिंहमुखी भूखण्ड पर बने भवन में स्वप्न में भी सुख नहीं मिलता है। यदि साथ में पश्चिम-दक्षिण रोड़ हो तो वह शेरमुखी शीघ्र ही छोड़ देना चाहिए। आवासीय प्रयोजन हेतु उसे गौमुखी भूखण्ड में बदलने से श्रेष्ठ फलदायक हो जावेगा, आप छोड़ी गई भूमि में किचन गार्डन बना सकते हैं। वहां वास्तु के अन्य नियमों का विशेष ध्यान रखें जिससे यह दोष क्षीण हो सके।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया
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