भूमि गौमुखी
भूमि गौमुखी आप लो, कितनी किम्मत होय।
सौ-सौ सुख तुमको मिले, सुन-सुन दुश्मन रोय ।।
सुन-सुन दुश्मन रोय, अब न दुश्मनी में सार ।
आकर मिलाय हाथ, बदले वही व्यवहार ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, कभी न होय आप दुखी ।
अंत स्वर्ग ले जाय, वही ‘गौ’ भूमि गौमुखी ।।
शब्दार्थ: : गौमुखी = वह भूमि जो आगे से संकड़ी और पीछे से चैड़ी हो, गौ = कामधेनु गाय के समान फलदायी
भावार्थ:
आवासीय प्रयोजन के लिए गौमुखी भूखण्ड ही लेना चाहिए। उसकी कीमत चाहे अधिक हो। इस भूमि पर यदि वास्तु नियमानुसार निर्माण कराया जाए तो इतने सुखों की प्राप्ति होती है कि सुन-सुन कर व देख-देख कर दुश्मन मन ही मन रोने लग जाता है। वह सोचता है अब दुश्मनी में कोई सार नहीं है, मित्रता के लिए हाथ मिलाने घर पर आता है व दीपावली दूर होने पर भी मिठाई का बड़ा-सा पैकेट देकर जाता है।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि उस भूमि पर आप कभी दुखी नहीं होए और जीवन के अंत में वही गौमुखी भूमि
आपको स्वर्ग ले जाएगी।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया
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