भू-विस्तार
विस्तार दिखे जब
कभी, देखो ध्यान लगाय।
कोण ईशान
होय तो, तनिक नहीं घबराय ।।
तनिक नहीं
घबराय, बढ़ती है घर की
शान।
चाँद-सितारे उतर, कर बढ़ाय
घर कीशान।।
कह ‘वाणी’
कविराज,और करे सब
अपकार।
बना देय
समकोण, होय जिधर भी विस्तार।
शब्दार्थ:
: शान = प्रतिष्ठा, अपकार = बुराई, विस्तार = भुजाओं
का विस्तार व उस कोण
का न्यून होना
भावार्थ:
श्रेष्ठ भूखण्ड की विशेषताएँ यह होती
हैं कि चारों भुजाएँ बराबर व चारों
कोण समकोण होते हैं। यदि किसी भुजा में विस्तार हो रहा हो
तो उसे ध्यान पूर्वक देखना चाहिए। यदि ईशान कोण में भुजाओं की वृद्धि के कारण
न्यून कोण बन रहा हो
तो यह स्थिति सभी के
लिए हर प्रकार से श्रेष्ठतम्
है। ऐसी आकृति के भूखण्ड में आसमां
से चाँद-सितारे उतर कर कुल-गौरव बढ़ाते
हैं। अच्छे प्रारब्ध वाली आत्माएँ जन्म लेती हैं
‘वाणी’
कविराज कहते हैं कि ईशान कोण
को छोड़ कर यदि किसी
अन्य कोण में विस्तार होतोभूमि को कम ज्यादा
कर उसे समकोण में बदलने पर ही वह
भूखण्ड आवासीय दृष्टि से उपयोगी भूखण्ड बन सकेगा।
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