भगतराम
सौ-सौ के नोट रखते, मन में रखे न राम ।
पल-पल नया झूठ कहे, तो कहे भगतराम ।।
तो कहे भगतराम, भरी तिजोरियाँ रोवे ।
रोय वह जीवन भर, नयन कभी नहीं सोवे ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, आप आपको न कोसो
बुलालो वास्तुकार, नोट दो सौ के सौ-सौ ।।
शब्दार्थ:
भगतराम = राम का भगत, नयन = नेत्र, कोसो = आत्मग्लानि अनुभव करना
भावार्थ:
जिनके घरों में सौ-सौ के नोटों की तिजोरियाँ भरी होती हैं, वे मन में राम नहीं रख पाते हैं, दिन में सौ-सौझूठ बोलने पर भी लोग उन्हें भगतराम का ही दर्जा देते हैं। आधुनिक भगतराम कई प्रकार की मुसीबतों के कारण मनही मनरोते रहते हैं। जीवन में उन सजल नेत्रों को कभी आराम नहीं मिल पाता है।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि आप अपने को न कोसें । किसी अनुभवी वास्तुकार को बुलवाकर, सौ नोट सौ सौ के,देकर भवन में सुधार करवालें जिससे धन के साथ-साथ कई प्रकार के अन्य सुख भी प्राप्त होएंगे।
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