भागे कर्जा
कर्जा हो जब आपके, ऐसा करना आप ।
ढाल बढ़ा दो भूमि का, ईशान कोण माप ।।
ईशान कोण माप, करो और अधिक नीचे ।
नैऋत करो ऊँचा, उतारे कर्जा नीचे ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, भवन ले पहला दर्जा ।
डरता-डरता चार, दिनों में भागे कर्जा ।।
शब्दार्थ: ढाल = ढलान, दर्जा = श्रेणी
भावार्थ:
जीवन में कर्जा हो जाने की स्थिति में ईशान कोण की ओर भूमि का ढलान बढ़ा देना चाहिए । भूमि, फर्शी और ऊपर की पेरापेट की दीवारों को इस प्रकार बनावें या उसकी मरम्मत करें कि सभी का झुकाव-ढलान पूर्वी-उत्तरी भाग की ओर ही रहे । यदि पहले से ढलान युक्त है तो उसका ढलानथोड़ा और बढ़ा देवें । नैऋत कोण को ऊपर करते ही वह कर्जा नीचे उतार देगा ।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि इस प्रकार वह शहर में पुनरू पहले दर्जे का भवन बन जावेगा । कर्जा चार दिनों में ही ऐसा डरता-डरता भागेगा कि फिर पीछे कभी मुड़कर भी नहीं देखेगा ।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
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