अग्नि कोण जीना
अग्नि कोण जीना जहाँ, जीना मुश्किल होय।
बेटा - बेटा वे करें, बेटा कभी न होय।।
बेटा कभी न होय, आय ना चित्त में चैन।
बेकार आभूषण, यह व्यर्थ गले की चेन।।
कह ‘वाणी’ कविराज, तुम रहो ना कभी मौन।
किचन देवो बनाय, भाई जहाँ अग्नि कोण।।
शब्दार्थ: बेकार = व्यर्थ, चित्त में चेन = मन को संतोष, जीना = सीढ़ीध्जीवन-यापन
भावार्थ:
घर के अग्नि कोण में जीना बनना, जीना ही मुश्किल कर देता है। बेटा-बेटा करते रहने पर भी बेटा नहीं होता है। इस वास्तु-दोष से वंश-वृद्धि कुप्रभावित होती है। तब व्याकुल चित्त को चैन नहीं मिलता और गले में पड़ीसोने कीचेन के साथ-साथ सारी धन-माया व्यर्थ जान पड़ती है।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि आपको घबराने की आवश्यकता नहीं है। आपको मौन रहते हुए इन विष-घूटों को भी नहीं पीना है, इतना-सा कार्य करें कि यदि अग्नि कोण में गलती से जीना बन गया हो तो उसे गिरवाकर वहाँ किचन बनवा देने से सब कुछ ठीक हो जाएगा।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया
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