मेन रोड़ उत्तर रहे
मेन रोड़ उत्तर रहे, उतरे कर्जा भार ।
सातों दिन त्यौहार से, भोगे साहूकार ।
भोगे साहूकार, बढ़ता धन-पारावार।
हो पुत्र होनहार, होवे विदेश व्यापार ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, स्वर्ग पूरा आय उतर।
जीओ सौ-सौ साल, रखो भई रोड़ उत्तर।।
शब्दार्थ: पारावार = समुद्र, होनहार = प्रतिभाशाली, जीओ-जीवित रहो
भावार्थ: उत्तर दिशा में मख्य द्वार होने से कर्जा । उतरता व आय बढ़ती है। वह सप्ताह के सातों ही दिनों का त्यौहार की भाँति उपभोग करता है। अच्छे साहूकार के समान समाज व बाजार में प्रतिष्ठा बढ़ती है। बढ़ता हुआ खजाना समुद्र की भाँति हिलोरेखाने लगता है। वहाँ ऐसे होनहार पुत्रों के प्रयासों से उनका व्यापार विदेशों तक बढ़ता है।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि ऐसा लगता है कि पूरा स्वर्ग ही उन भवनों में उतर आया हो। वे लोग सौ-सौ वर्षों की पूर्ण आयु पाकर स्वर्गारोहण करते हैं। इस प्रकार उत्तर दिशा का रोड़ हर प्रकार की उन्नति में सहायक सिद्ध होता है।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
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