त्याग दो ऐसा त्रिभूज
त्रिभुज जहाँ कहीं बने , समझ उसे त्रिशूल ।
दिन-दिन भारी कष्ट दे , कभी न कर तू भूल ।।
कभी न कर तू भूल, हो मुकदमा बिना बात।
धन का होवे धूल, धूल उड़ेगी दिन-रात।।
कह ‘वाणी’ कविराज, जेल जाय अग्रज-अनुज।
बिताय चैदह साल, त्याग दे ऐसा त्रिभुज।।
शब्दार्थ: त्रिशूल = तीन प्रकार के कष्ट एक साथ होना,
अग्रज-अनुज = बडे़ व छोटे भाई बन्धु,
चैदह साल = हत्या के अभियुक्त की सजा की अवधि
भावार्थ: त्रिभुजाकार भूखण्ड को त्रिशूल समझ शीघ्र ही त्याग देना चाहिए। उस भूमि पर निवास करने से प्रतिदिन कष्ट और बाधाएँ बढ़ती जाती हंै, ऐसा प्लाट लेने की कभी भी भूल न करें। वहाँ छोटी-छोटी सी बात पर मुकदमें चलते हैं। धन की धूल हो जाती है। वही धूली दिन-रात उड़-उड़ कर नेत्रों व हृदय के प्रेम-पुष्पों पर जम जाती है।

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